एपिसोड ५१ — असुरों का सिद्धान्त | स्वामी निरंजनजी पॉडकास्ट विद् सैम योगीछान्दोग्य उपनिषद् - अष्टम अध्याय
— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराजविरोचन का भ्रान्तधारणा विरोचन प्रजापति के तात्पर्य को न समझ देह को ही आत्मा मान शान्त चित्त से असुर लोक में पहुँचा और अन्य लोगों को यह आत्म विद्या सुनायी — कि यह शरीर ही आत्मा है। यही पूजनीय है, और शरीर ही सेवनीय है। शरीर की ही पूजा और परिचर्चा करने वाला पुरुष ही इस लोक और परलोक दोनों लोकों को प्राप्त कर लेता है। यह सिद्धान्त असुरों का है। वे ही मृत पुरुष के शरीर को भिक्षा, श्राद्ध, गन्ध, पुष्प, सिन्दूर, श्रृंगार, स्नान, वस्त्र धारण कराते हैं तथा उसके मुख में गंगाजल, तुलसी पत्र, मिष्ठान्न देते हैं। तथा उसे वस्त्र और अलंकार से सुसज्जित कर उसके सम्मुख नाच, गाना, बजाना, करते हैं। और इसके द्वारा हम परलोक प्राप्त करेंगे ऐसा मानते हैं। असुरों के इस प्रकार वेद विरुद्ध मत का जो कोई पालन करेगा, वह निश्चय ही पराभव को प्राप्त होगा अर्थात् महान् दुःख रूप संसार गति को प्राप्त होगा।#निरंजनजी, #स्वामीनिरंजन, #सैमयोगी, #छान्दोग्यउपनिषद्, #वेदांत, #भारतीयज्ञान, #आध्यात्मिकज्ञान, #उपनिषद्, #भूमा, #आत्मस्मृति, #ब्रह्मज्ञान, #Indra, #Prajapati, #Virochana