परमात्मा और जीवात्मा की एकता के विषय में निश्चयात्मक बुद्धि का उदय होना ही समाधि है।
अज्ञानी पुरुषों ने एक परमात्मा को ही जीव और ईश्वर इन दो रुपों में कल्पित कर लिया है। मैं न देह हूँ, न प्राण हूँ, न इन्द्रिय समुदाय हूँ और न मन ही हूँ, सदा साक्षी रूप में स्थित होने के कारण मैँ एकमात्र शिव स्वरूप परमात्मा हूँ।
— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज
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