Listen

Description

परमात्मा और जीवात्मा की एकता के विषय में निश्चयात्मक बुद्धि का उदय होना ही समाधि है।

अज्ञानी पुरुषों ने एक परमात्मा को ही जीव और ईश्वर इन दो रुपों में कल्पित कर लिया है। मैं न देह हूँ, न प्राण हूँ, न इन्द्रिय समुदाय हूँ और न मन ही हूँ, सदा साक्षी रूप में स्थित होने के कारण मैँ एकमात्र शिव स्वरूप परमात्मा हूँ।

— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज

#निरंजनजी, #ब्रह्मज्ञान, #समाधि, #स्वामीनिरंजन, #सैमयोगी, #याज्ञवल्क्य, #मैत्रेयी, #जाबालदर्शन, #उपनिषद् , #वेदांत, #भारतीयज्ञान, #आध्यात्मिकज्ञान, #आत्मस्मृति