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एपिसोड 58 — कैवल्य उपनिषद् - आत्मा का स्वरूप | स्वामी निरंजनजी पॉडकास्ट विद् साम योगी

जो आत्मा को सब भूतों में देखता है तथा सब भूतों को आत्मा में देखता है वह परब्रह्म को प्राप्त होता है।

मैं न देह हूँ, न प्राण हूँ, न इन्द्रिय समुदाय हूँ और न मन ही हूँ, सदा साक्षी रूप में स्थित होने के कारण मैँ एकमात्र शिव स्वरूप परमात्मा हूँ।

— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज

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