एपिसोड 59 — कैवल्य उपनिषद् - आत्मा का स्वरूप तथा उसे जानने का उपाय | स्वामी निरंजनजी पॉडकास्ट
जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति आदि जो प्रपञ्च भासमान है, वह ब्रह्म स्वरूप है। और वही मैं हूँ, इस प्रकार जानकर जीव समस्त बन्धनों से मुक्त हो जाता है। तीनों धाम जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति में जो कुछ भोक्ता, भोग्य और भोग है, उनसे विलक्षण साक्षी, चिन्मात्र स्वरुप सदाशिव मैं हूँ। मुझमें ही सब कुछ उत्पन्न हुआ है, मुझमें ही सब कुछ प्रतिष्ठित हुआ है। मुझमें ही सब लय को प्राप्त होते हैं। वह अद्वय ब्रह्म स्वरूप मैं ही हूँ। मैं अणु से अणु हूँ, इसी प्रकार मैं महान से महान हूँ, यह विचित्र विश्व मेरा ही स्वरूप है।
— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज
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