एपिसोड 61 — श्रीनृसिंहोत्तर तापनीय उपनिषद् - नवम खण्ड | स्वामी निरंजनजी पॉडकास्ट - September 25, 2025
जीव, ईश्वर, जगत् माया कृत होने से जगत् और तत् सम्बन्धी व्यवहार सब-के-सब मिथ्या ही है। यह आत्मा ही अद्वितीय सत्य है। सत्-चित्-आनन्द इन लक्षणों द्वारा ही इसका ज्ञान होता है। इस ब्रह्म में उससे भिन्न दूसरी किसी वस्तु का अनुभव नहीं होता। ब्रह्म में अविद्या भी नहीं है, क्योंकि वह ज्ञान स्वरूप है, स्वयंप्रकाश है, सबका साक्षी, निर्विकार और अद्वितीय है। यह सत स्वरूप ब्रह्म अपने शरीर में आत्मा रूप से स्थित आनन्दघन, चित्घन एवं स्वतः सिद्ध है। वास्तव में कार्य रूप जगत् की सत्ता न होने से यह परमात्मा सृष्टि का कारण रूप भी नहीं है।
— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज
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