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एपिसोड 63 — स्वामी निरंजनजी पॉडकास्ट - September 27, 2025 | श्रीनृसिंहोत्तर तापनीय उपनिषद् - नवम खण्ड

आत्म स्वरूप में मन, वाणी की गति नहीं है। नेत्र उसे देख नहीं सकते, और बुद्धि सोच नहीं सकती। पांचों प्राण (प्राण, अपान, उदान, व्यान, समान) का भी विषय नहीं है। वह न इन्द्रिय है न विषय रूप, उसके न करण हैं न लक्षण हैं। वह असङ्ग है। सत-रज तथा तम इन तीनों गुणों से पृथक् है। तथा माया से शून्य एवं उपनिषदों के द्वारा ही लक्षणा से जानने योग्य है‌ क्योंकि वह ज्ञान स्वरूप है, पदार्थ स्वरूप नहीं। वह उपलब्धि करने का विषय नहीं है‌ केवल उपलब्धि स्वरूप अर्थात् नित्य प्राप्त तत्त्व है। और यह श्रुति का सिद्धान्त है कि नित्य प्राप्त तत्त्व की प्राप्ति किसी साधन से नहीं हो सकती है। किन्तु प्राप्त होते हुए भी प्रतीत नहीं होती तब उसके प्राप्ति के लिए साधन यदि है तो केवल मात्र ज्ञान, अन्य साधन नहीं। ज्ञान द्वारा भी प्राप्ति नहीं होती बल्कि अनुभव ही होता है एवं अप्राप्त की भ्रान्ति दूर होती है।

— वेदान्त केशरी स्वामी निरंजनजी महाराज

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