Sakina se pyaar.
याद नहीं कब कैसे घर आए। रात खाना खाने के बहुत देर तक नींद नहीं आई। चमचम दांतोंवाली सकीना की मुस्कुराती सूरत मन से हटने का नाम नहीं ले रही थी। उसका 'सादी करेगा मुस्से' कोहराम मचाए हुआ था।
"जल्दी सोता क्यों नहीं !" माँ ने झिड़की लगाई। उसे क्या पता मुझे सकीना से मोहब्बत हो गई थी। और मोहब्बत में नींद कहां आती है।
कुछ दिन पहले बाबू के साथ हमने एक पिक्चर देखी थी जिसके अंत में हीरोइन ने हीरा चाटकर खुदकुशी कर ली थी। मरी हुई हीरोइन का हाथ थामे हीरो रोता जाता था "तुमने ऐसा क्यों किया मीना ? क्यों किया ऐसा ?"
नींद उड़ी हुई थी और पिक्चर का वही आखिरी सीन जहन में चिपक गया था। पहली मोहब्बत ने मेरी कल्पना को पागल बना दिया था। घर वालों ने सकीना के साथ मेरी शादी कराने से इंकार कर दिया। 'मुसलमान की बेटी को घर लाएगा? पैदा होते ही मर क्यों नहीं गया ?' जैसे डायलॉग मेरे भीतर गूंज रहे थे। ऐसे में मैंने खुदकुशी कर ली। मां-बाबू-भाई बहन सारे बुरी तरह रो रहे थे।
सकीना की एंट्री हुई - "तुमने ऐसा क्यों किया! क्यों किया अशोक!" सकीना रोती जा रही थी। मैं बड़ी मुश्किल से रुलाई रुके हुए था। सकीना के विलाप के बाद मैं तकिए के नीचे सिर दबाए सचमुच रोने लगा।
(अशोक पांडे Ashok Pande के बहुप्रशंसित उपन्यास 'लपूझन्ना' से आरंभिक अंश।)
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