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Description

"श्याम (a renowned actor and Manto's close friend) ने भी मेरे पड़ोस में अपना बंगला बनवाया था। एक दिन खबर मिली कि आउटडोर शूटिंग करते हुए वे घोड़े से गिरकर मर गए हैं। सुनकर बहुत दुख हुआ।  श्याम जी रावलपिंडी के थे और हमारे परिवारों का आपस में बहुत प्यार था। वह मेरी बहुत इज्जत करते थे।

मातमपुर्सी के लिए मैं घर से पैदल चल पड़ा। क्योंकि मेरी मोटरसाइकिल का ड्राइवर नहीं आया था। यह भी अपने आप में एक दिलचस्प किस्सा है। मोटर के लिए ड्राइवर रखना आम बात है। पर मोटरसाइकिल के लिए ड्राइवर रखने वाला मैं इतिहास में शायद पहला आदमी था। मैं अपने तजुर्बे से बहुत जल्दी सीख गया था कि किसी फिल्म स्टूडियो के फाटक में पैदल दाखिल होना अपमान की बात है। दरबानों और पहरेदारों को पैदल आनेवाले लोगों से बुरा सुलूक करने में बहुत मजा आता है।

हास्य अभिनेता दीक्षित अपने बीते अपमानों की याद में स्टूडियो में दाखिल होते समय अपनी मोटर से उतरकर दरबान को प्रणाम किया करते थे। एक दिन मेरे मित्र मामा फसालकर मुझको बताया कि वी शांताराम के छोटे भाई अवधूत के पास एक बिल्कुल नई पांच हॉर्सपावर ए जे एस मोटरसाइकिल है जिसे वे बेचना चाहते हैं ।

मैंने किसी ना किसी तरह पैसा बटोरकर उसे खरीद लिया। पर उस शैतान के चरखे को चलाएं कौन ? उसे तो देखकर ही मुझे डर लगता था, चलाने की तो बात ही अलग थी। मामा फसालकर को चलानी आती थी और चलाने का शौक भी था। उन दिनों वे थे भी बेकार। एक फिल्म में ख्वाजा अहमद अब्बास के सहायक बनकर वे लाहौर गए थे और वापस आने पर उन्हें कोई काम नहीं मिला था। सो मैंने उन्हें मोटरसाइकिल की ड्राइवरी का काम दे दिया। वह चलाते, मैं पीछे बैठता। बदले में वह मेरे यहां खाते और सो रहते।"

~ बलराज साहनी, मेरी फिल्मी आत्मकथा

(प्रसिद्ध अभिनेता और लेखक बलराज साहनी ने अपनी किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' अपनी मृत्यु से एक साल पहले यानी 1972 पूरी की थी। यह सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई। फिर उनके जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।

1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथों हाथ लिया।)

Narrator, Producer and Cover Designer : Irfan