अपने बचपन में फिल्मों के शुरुआती एनकाउंटर्स और युवावस्था में उनके मोहपाश से गुज़रते हुए अपनी आत्मकथा के इस दूसरे अध्याय में बलराज साहनी कहते है -
जो विद्वान फिल्मों का नाम सुनते ही उपेक्षा से नाक भौं सिकोड़ लेते हैं, उन्हें सिनेमा के व्यापक स्तर पर होनेवाले व्यापक प्रभावों पर संजीदगी से गौर करना चाहिए।
(बलराज साहनी की किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई।
बलराज जी के जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।
1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथो हाथ लिया।)
Cover Art: Irfan