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Description

"पर मेरी सभी आशाएं ख़ाक में मिल गयीं। ऐसा लगा जैसे किसी ने पहाड़ की चोटी से मुझे नीचे पटक दिया हो। कला की सब क़दरों और क़ीमतों पर जैसे छुरी फेर दी गयी हो। संस्कृत का मुझे बचपन से शौक़ रहा था और अभिज्ञानशाकुंतलम को मैं कोमल अनुभूतियों का ख़ज़ाना मानता हूँ। शांताराम जैसा निर्देशक उसे इतना खुरदुरा और भद्दा बनाकर पेश करेगा, दिल मानने को तैयार नहीं होता था। कहीं यह कोई दूसरा शांताराम तो नहीं है ? मेरी आत्मा व्याकुल हो उठी। गरमी और गंदगी के मारे मैं पहले से परेशान था, अब तो सारी भूख और प्यास भी जाती रही।"

~बलराज साहनी ('मेरी फ़िल्मी आत्मकथा')

(बलराज साहनी की किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई।

बलराज जी के जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।

1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथों हाथ लिया।)