"अब मुझे कॉन्ट्रैक्ट मिल गया था और मैं दावे के साथ अपने आप को फिल्म-अभिनेता कह सकता था।
आज कॉन्ट्रैक्ट हुआ है, कल काम शुरू हो जाएगा ऐसा मेरा अनुमान था।
पर दिन पर दिन बीतने लगे। न काम के, न ही पैसे के आसार नजर आए। पर शूटिंग का खयाल मेरे मन पर पूरी तरह छा गया था। नाई से बाल कटवाने के लिए भी मैं प्रोड्यूसर के दफ्तर जाकर ही इजाजत मांगता, क्योंकि किसी से सुन लिया था कि थोड़ा बहुत फर्क पड़ जाने से 'कांटिन्यूटी' में 'जम्प' आ जाता है।
कांटिन्यूटी क्या बला थी, और जंप क्या, मुझे पता नहीं था। पर मैं ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता था, जिससे कला को नुकसान पहुंचे।
क्या पता किस दिन अचानक शूटिंग निकल आए।
ऐसी हास्यास्पद हरकतें फिल्मों के नए रंगरूट आमतौर पर करते हैं। वे साबुन से मलमल कर मुंह धोते हैं, क्रीमें थोपते हैं। आईने के सामने तरह तरह के पोज़ बनाते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि अभिनय कला का ज्यादा संबंध चिंतन के साथ है। बाहरी चीजें इतना महत्व नहीं रखतीं।"
~ बलराज साहनी, अभिनेता (मेरी फ़िल्मी आत्मकथा)
Cover Art: Irfan