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गाना: बड़े भाग मानुस तन पायो...

(An exclusive recording from Irfan's archives)

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आवाज़ें: नाथूराम अहिरवार और साथी

जब मैं वैशाली (Delhi NCR) में रहने आया तो यहां आबादी बहुत कम थी. नये मकान बन रहे थे. ऐसी ही एक इमारत जब ठीक हमारे घर के सामने बननी शुरू हुई तो उसके बेसमेंट में शाम को कुछ गाने-बजाने की आवाज़ें सुनाई देती थीं.  दो-तीन शामें गुज़री होंगी कि मुझसे रहा नहीं गया और मैंने एक शाम वो महफ़िल ज्वाएन की.

असल में मुझे अपने बचपन की शामें याद हो आई थीं जो बहुत पीछे कहीं छूट गयी हैं और उन तक अब पहुंचना असंभव है क्योंकि अब वह एक विस्थापित हो चुका सांकृतिक संसार है. बहरहाल वहां थोड़ी कोशिश के बाद अनौपचारिक संबंध बना सका और गोल बनाकर धुआं-पत्ती करते इन बुंदेलखंडी मज़दूरों की मस्ती का साझीदार बना. बहुत मामूली वाद्य यंत्रों और श्रम की मिठास से बना संगीत, जिसमें फ़लसफ़ा है और एक बेलौसपन भी. 

इन्हीं स्वरों से कहीं मालवा में पंडित कुमार गंधर्व भी कभी बंध गये होंगे और फिर उनका संगीत कभी वह हो सका जिसकी एक रॊयल फ़ैन फ़ॊलोविंग है.    

अब आपको इस बंदिश के कलाकारों से मिलवा दूं. 

तमूरा और भजन गानेवाले: नाथूराम अहरवार 

झेला: दसरथ अहरवार 

ढोलकी मास्टर: सुरेश अहरवार 

तार बजानेवाले: नंदलाल  

तो सुनिये नाथूराम और साथियों को...जो बीते सात-आठ बरसों में कई दूसरे मोहल्लों में शामें गुलज़ार करने के बाद ऐन इसी वक़्त, जब कि मैं उनका रचा सं‍गीत आप तक पहुंचाने की जद्दोजहद में हूं, वो एक नया संगीत रच रहे होंगे.  

बड़े भाग से ये तन पाये बोललियो रे मीठी बानी 

जग में आके गरब ना करियो थोरे दिन की जिंदगानी...  

Cover Image and Art: Irfan