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Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "कठपुतलियों की दुनिया" written by Rama Yadav .
We bring to you short Hindi stories which would fill you with different human emotions , each story is hand picked and carefully crafted for the listener.
कठपुतलियों की दुनिया ( एक छोटी सी कहानी ) कहानी पढ़कर अपने विचार ज़रूर लिखें
गुलाबी रंग कि कठपुतलियां यूँ ही दिवार पर टंगी हुईं थी l इस घर में आए उन्हें कई बरस हो गए थे l खरीदा उन्हें किसी लड़की ने था और वो लड़की , उन्हें एक दादी को दे गयी थी , दादी प्यारी सी थी , लड़की तो उन्हें दे गयी थी ..पर दादी ने उन्हें बड़े प्यार से सम्भाला था ...दरअसल अब वो कठपुतलियाँ दादी की ही हो गयीं थीं ..दादी सुंदर सी थी ..तीखी सी आवाज़ ...दादी चीखती भी तो प्यारी लगती ..लगता कोई गुडिया चीख रहीं हैं ..कठपुतलियां डर जाती पर चिल्लाने के बाद दादी हंस देतीं और दोनों कठपुतलियां आँखों में डाल – डालकर मुस्कुरा देती l उनकी समझ से परे था कि दादी चीखती भी हैं और हंसती भी हैं ...दादी कि नज़र बचाकर कठपुतलियां कभी – कभी नाचने लगतीं ..पर उन्हें ये देखकर हैरानी हुई कि एक दिन नहाकर ..नयी सारी पहनकर दादी नाचने लगीं ..कठपुतलियों को लगा कि कहीं दादी ने उन्हें नाचते तो नहीं देख लिया ....क्योंकि दादी नाचते हुए एक कठपुतली ही लग रहीं थीं ..कठपुतलियां एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर फिर से हंस पड़ीं ...
दादी ने घर को प्यार से सजाकर रखा था .कठपुतलियों को याद है दादी ने पीले रंग के उस लैम्प को कितने प्यार से परदे के बीचो बीच उसके पाइप पर ...जगह बनाकर टांगा था ..दादी बैठ जाती और पीले लैम्प को टंगा देखती जाती और खुद को उसमें दीपक की तरह जला देती l दादी का दिल उसमें जलता – बुझता रहता ..वो सोचती रहती कि उन्हें क्या करना था ..और वो क्या- क्या कर पाई ..ऐसे ही जलते – बुझते दादी सो जाती ..
दादी के सोने के बाद ..कठपुतलियां दादी के लैम्प को लेकर खेलतीं और बीच – बीच में टकटकी लगाए दादी को भी देखते रहतीं ...और फिर वो भी सोने चली जातीं ..कठपुतलियों को याद है कि दादी को जब एक दिन सुंदर सा मजबूत मिट्टी का हाथी मिला ..तो उस हाथी को दादी ने खूबसूरती से सजा दिया था ..कठपुतलियों को पता है कि उस दिन दादी का मन किया था कि वो इस हाथी पर बैठकर किसी राजा को ब्याहने जाए ...और वो अपने सर पर अपनी चुन्नी का साँफा बाँध खूब हँसी थीं ...और झूठ – मूठ अपनी मूछों पर ताव भी दिया था , फिर दादी ने कठपुतलियों को यूँ देखा कि जैसे पूछ रहीं हो कि आओ चलो – चलती हो मेरी बरात में ...... फिर दादा को देखकर चुपचाप सो गयीं थीं ....
कठपुतलियां आज बड़ी परेशान थीं ..उनमें छटपटाहट थीं कि वो इस दिवार पर टंगी – टंगी ही दादी को ज़मीन पर पसरी न देखती रहें ..उन्होंने देख लिया था कि दादी को उसी लड़की ने सजा दिया है जो एक दिन उन्हें दादी को लाकर दे गयीं थी ..अब दादी चलने को थीं ...कठपुतलियाँ बेतहाशा ...छूटना चाह रहीं थीं ..वो दादी के पास आकर नाचना गाना चाहती थीं ....अचानक उनकी नज़र उस लड़की से मिल गयी जो उन्हें लायी थी ..
कठपुतलियाँ लड़की की आँखों को देखकर समझ गयीं कि दादी के साथ – साथ उनकी दुनिया भी उनसे छिन गयीं हैं ..अब वो इस घर में शायद कुछ ही और दिन की मेहमान हैं l
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