प्रेमचंद्र जी ने मोटेराम शास्त्री पात्र के माध्यम से एक सामाजिक व्यंग्य लिखा है मोटेरम कभी अध्यापक है कभी राजनीतिज्ञ अंतत वह नकली आयुर्वेदिक डाक्टर बनकर लखनऊ शहर चला जाता है गुप्त रोगियों के उपचार से उसकी वैदगिरी चल पड़ती है ,इलाज के चक्कर में शास्त्री जी एक विधवा रानी को दिल दे बैठे लेकिन रानी के दूसरे चाहने वालों ने मोटे राम जी खूब पिटाई की .शास्त्री जी को वापस अपने शहर आना पड़ा.शास्त्री जी की पत्नी कभी भी उनके कर्मों से सहमत नही थी.