अतः जिस प्रकार बच्चे मांस और लहू में सहभागी हैं, तो वह आप भी उसी प्रकार उनमें सहभागी हो गया, कि मृत्यु के द्वारा उसको जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली है, अर्थात् शैतान को, शक्तिहीन कर दे, और उन्हें छुड़ा ले जो मृत्यु के भय से जीवन भर दासत्व में पड़े थे।”
इब्रानियों 2:14–15
मुझे लगता है कि, इब्रानियों 2:14–15 ख्रीष्ट आगमन का मेरा सबसे प्रिय खण्ड है, क्योंकि मैं किसी अन्य खण्ड को नहीं जानता जो यीशु के पृथ्वी पर व्यतीत किये गए जीवन के आरम्भ और अन्त के बीच के सम्बन्ध को इतनी स्पष्ट रीति से व्यक्त करता है—जो कि देहधारण और क्रूसीकरण के मध्य का समय है। ये दो पद इस बात को स्पष्ट करते हैं कि यीशु क्यों आया था; अर्थात्, मरने के लिए। ये पद किसी अविश्वासी मित्र या परिवार के सदस्य के साथ क्रिसमस के विषय में हमारे ख्रीष्टीय दृष्टिकोण को क्रमबद्ध रीति से बाँटने हेतु हमारे लिए उपयोगी हैं। यह कुछ इस प्रकार किया जा सकता है, एक समय में एक वाक्यांश को समझाने के द्वारा:
अतः जिस प्रकार बच्चे मांस और लहू में सहभागी हैं . . .
यह शब्द “बच्चे” पिछले पद (इब्रानियों 2:13) से लिया गया है और यह ख्रीष्ट, अर्थात् मसीहा की आत्मिक सन्तानों का उल्लेख करता है (यशायाह 8:18; 53:10 देखें)। ये लोग “परमेश्वर के बच्चे” भी हैं (यूहन्ना 1:12)। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के द्वारा ख्रीष्ट को भेजने का कारण विशेष रीति से उसके “बच्चों” का उद्धार था।
यह सत्य है कि “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया, कि उसने [यीशु] को दे दिया” (यूहन्ना 3:16)। परन्तु यह भी सत्य है कि परमेश्वर विशेष रूप से “परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को” इकट्ठा कर रहा था (यूहन्ना 11:52)। परमेश्वर की योजना यह थी कि वह ख्रीष्ट को इस संसार के लिए दे, और अपने “बच्चों” के उद्धार को पूर्ण करे (देखें 1 तीमुथियुस 4:10)। आप ख्रीष्ट को ग्रहण करने के द्वारा गोद लिए जाने का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं (यूहन्ना 1:12)।
. . . वह आप भी उसी प्रकार उन [मांस और लहू] में सहभागी हो गया . . .
इसका अर्थ यह है कि देहधारण से पूर्व ख्रीष्ट का अस्तित्व था। वह आत्मा था। वह अनन्त वचन था। वह परमेश्वर के साथ था और परमेश्वर था (यूहन्ना 1:1; कुलुस्सियों 2:9)। परन्तु उसने माँस और लहू को धारण किया, और अपने परमेश्वरत्व पर मानवता को धारण कर लिया। वह पूर्ण रीति से मनुष्य बन गया और पूर्ण रीति से परमेश्वर बना रहा। यह कई रीति से एक महान् रहस्य है। परन्तु यह हमारे विश्वास के केन्द्र में है—तथा यह वह बात भी है जिसकी शिक्षा बाइबल देती है।