“मेराप्राणप्रभुकीबड़ाईकरताहै, औरमेरीआत्मामेरेउद्धारकर्तापरमेश्वरमेंआनन्दितहुईहै,
क्योंकिउसनेअपनीदासीकीदीन-हीनदशापरकृपा-दृष्टिकीहै।
इसलिएदेखो, अबसेलेकरयुग-युगान्तरकीपीढ़ियाँमुझेधन्यकहेंगी।
क्योंकिसर्वशक्तिमाननेमेरेलिएमहान्कार्यकिएहैं,
औरउसकानामपवित्रहै।
औरउसकीदयापीढ़ीतकउनपरबनीरहतीहैजोउससेडरतेहैं।
उसनेअपनेभुजबलसेसामर्थ्यकेकार्यकिएहैं
औरउनकोतितर-बितरकरदियाजोअपनेहृदयकीभावनाओंमेंअहंकारीथे।
उसनेराजाओंकोसिंहासनसेगिरादिया,
औरदीनोंकोमहान्करदिया।उसनेभूखोंकोतोअच्छीवस्तुओंसेतृप्तकरदिया
औरधनवानोंकोखालीहाथनिकालदिया।
जैसाकिउसनेहमारेपूर्वजोंसेकहावैसाहीउसनेसदाअब्राहमतथाउसकेवंशकेप्रतिअपनीदयाकोस्मरणकरके
अपनेसेवकइस्राएलकीसहायताकी।”
लूका 1:46–55
मरियम स्पष्ट रीति से परमेश्वर के विषय में एक अति उत्कृष्ट बात को देखती है: क्योंकि वह सम्पूर्ण मानव इतिहास की दिशा को बदलने वाला है; तथा सम्पूर्ण समय काल के सबसे महत्वपूर्ण तीन दशकों का आरम्भ होने वाला है।
परन्तु ऐसे समय में परमेश्वर कहाँ है? उसका ध्यान तो, दो अप्रसिद्ध एवं विनम्र स्त्रियों पर लगा हुआ है—एक बूढ़ी तथा बाँझ (इलीशिबा), दूसरी युवा तथा कुँवारी (मरियम)। परमेश्वर दीन-हीन लोगों का प्रेमी है और मरियम परमेश्वर के उस दर्शन से इतनी प्रभावित है, कि वह उसके लिए एक गीत गाने लगती है—ऐसा गीत जिसे “मरियम के स्तुति-गान” के नाम से जाना जाने लगा।
मरियम और इलीशिबा लूका के वृत्तान्त की उत्तम नायिकाएँ हैं। लूका इन स्त्रियों के विश्वास को प्रिय जानता है। ऐसा प्रतीत होता है कि, जिस बात से वह सबसे अधिक प्रभावित है और जिस बात का प्रभाव वह अपने सुसमाचार के श्रेष्ठ पाठक थियोफिलुस पर डालना चाहता है वह बात इलीशिबा और मरियम की दीनता और आनन्दपूर्ण नम्रता के साथ अपने शोभायमान परमेश्वर की अधीनता में रहना है।
इलीशिबा कहती है (लूका 1:43), “मुझ पर यह अनुग्रह कैसे हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?” और मरियम कहती है (लूका 1:48), “उसने अपनी दासी की दीन-हीन दशा पर कृपा-दृष्टि की है।”
केवल उन्हीं लोगों के प्राण वास्तव में प्रभु की बड़ाई कर सकते हैं, जो इलीशिबा और मरियम जैसे लोग होते हैं—वे ही लोग जो अपनी दीन-हीन दशा को स्वीकार करते हैं और शोभायमान परमेश्वर की कृपा-दृष्टि से भाव-विभोर हैं।