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एक जोखिमपूर्ण प्रेरणा

A Dangerous Motive.

किसने [परमेश्वर को] सर्वप्रथम कुछ दिया है जो उसे लौटा दिया जाए? क्योंकि उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है। उसी की महिमा युगानुयग होती रहे। आमीन। (रोमियों 11:35-36)

जब आज्ञाकारिता की बात आती है, तब कृतज्ञता एक जोखिमपूर्ण प्रेरणा है। इसको ऋणी की शब्दावली में व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, “देखो परमेश्वर ने आपके लिए कितना किया है। क्या आपको कृतज्ञता में होकर उसके लिए अधिक नहीं करना चाहिए?” अथवा, “ आप जो कुछ भी हैं तथा जो कुछ भी आपके पास है उसके लिए आप परमेश्वर के ऋणी हैं। आपने बदले में उसके लिए क्या किया है?”

इस प्रकार की प्रेरणाओं के प्रति मेरे पास कम से कम तीन समस्याएँ हैं।

पहली, यह असम्भव है  कि हम परमेश्वर के उस सारे अनुग्रह के लिए उसको पूरा भुगतान करें। हम तो उसको वापस लौटाना आरम्भ भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि रोमियों 11:35-36 कहता है, “किसने [परमेश्वर को] सर्वप्रथम कुछ दिया है जो उसे लौटा दिया जाए? [उत्तर: किसी ने भी नहीं!] क्योंकि उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है। उसी की महिमा युगानुयग होती रहे।” हम उसको वापस लौटा नहीं सकते हैं क्योंकि वह पहले से ही उस सब कुछ का स्वामी है जो उसको देने के लिए हमारे पास है — जिसमें हमारे सभी प्रयास भी सम्मिलित हैं।