विचारों के परिणाम होते हैं
Ideas Have Consequences.
इस आदेश का अभिप्राय यह है कि प्रेम उत्पन्न हो। (1 तीमुथियुस 1:5)
विक्टर फ्रैंकल को द्वितीय विश्व युद्ध के समय ऑशविट्ज़ (Auschwitz) और डाचौ (Dachau) के नाज़ी बन्दी शिविर (Nazi concentration camps) में बन्दी बना कर रखा गया था। तंत्रिका-विज्ञान और मनोचिकित्सा के यहूदी प्राध्यापक होने के कारण वह अपनी पुस्तक, मैन्स सर्च फॉर मीनिंग (Man’s Search for Meaning), के कारण विश्व विख्यात हो गए थे, इसकी अस्सी लाख से अधिक प्रतियों की बिक्री हुई थी।
इस पुस्तक में वह अपने दर्शनशास्र के सार के विषय में बताते हैं जिसे बाद में लॉगोथेरेपी (Logotherapy) के नाम से जाना जाने लगा — जिसका सारांश यह था कि मनुष्य का सबसे आधारभूत उद्देश्य है जीवन में अर्थ को ढूँढ़ना। उन्होंने इस बन्दी शिविर की वीभत्सता में यह देखा कि मनुष्य जीवन में किसी भी “कैसे” को अर्थात् परिस्थिति को सह सकता है, यदि उसके पास एक “क्यों” अर्थात् उत्तर है। परन्तु हाल ही में जिस वाक्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया वह यह है:
मुझे इस बात का दृढ़ निश्चय है कि ऑशविट्ज़, ट्रेब्लिंका और मेडन के गैस चैम्बर्स, बर्लिन के किसी सचिवालय में नहीं बनाए गए थे, वरन शून्यवादी (nihilistic) वैज्ञानिकों और दर्शनशात्रियों की मेजों और कक्षाओं के कमरों में बनाए गए होंगे। (“विक्टर फ्रैंकल एट नयन्टी: एन इंटरव्यू,” इन फर्स्ट थिंग्स, अप्रैल 1995, पृष्ट 41।)