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Description

अपने आँसुओं से बातें करें।

Talk to Your Tears

जो आँसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए काटेंगे। जो बीज लेकर बोने के लिए रोता हुआ चला जाता है, वह निश्चय ही अपनी पूलियां लिए हुए जयजयकार के साथ लौट आएगा। (भजन 126:5–6)

बीज बोना कोई दुःख की बात नहीं है। इसमें कटाई से अधिक काम नहीं होता है। ये दिन तो सुन्दर हो सकते हैं। अच्छी उपज की महान आशा भी रखी जा सकती है।

फिर भी यह भजन “आँसू बहाते हुए” बीज बोने की बात करता है। यहाँ लिखा है कि कोई “बीज लेकर बोने के लिए रोता हुआ चला जाता है।” तो फिर, वे क्यों रो रहे हैं?

मेरा विचार है कि इसका कारण यह नहीं है कि बोना एक दुःख भरा कार्य है, अथवा बोना एक कठिन कार्य है। मेरा विचार है कि इस प्रकार के कारणों का बोने से कोई लेना-देना नहीं है। बोना तो मात्र एक साधारण कार्य है जिसे किया जाना होता है। चाहे हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ हों जो हमें रुला रही हों।

फसल इस बात की प्रतीक्षा नहीं करेगी कि हम अपने क्लेश को समाप्त कर लें या अपनी सभी समस्याओं का समाधान निकाल लें। यदि हमें भविष्य के लिए पर्याप्त भोजन चाहिए, तो हमें बाहर जाना होगा और बीज बोना होगा, चाहे हम रो रहे हों या न रो रहे हों।

यदि आप ऐसा करते हैं, तो भजन में दी गयी प्रतिज्ञा यह है कि आप, “जयजयकार करते हुए काटेंगे।” आप “अपनी पूलियाँ लिए हुए जयजयकार के साथ लौट आएँगे।” इस कारण नहीं कि बोते समय बहाए गए आँसू कटनी के समय के आनन्द को उत्पन्न करते हैं, परन्तु इसलिए कि मात्र बोने की प्रक्रिया ही कटनी को लेकर आती है, और आप को इस बात को तब भी स्मरण रखना है, जब आप के आँसू आप को प्रलोभित करते हैं कि आप बोने के कार्य को त्याग दें।