मौसमों की तरह हम भी वापस लौट आते हैं, उनका अपना कायदा है, समय है और ज़िम्मेदारी है - और हमारा भी लगभग वैसा सा ही विधान हैं।
मार्च 2024 में भारत लौटने के बाद, अगस्त 2024 में फिर से उज़्बेकिस्तान ने अपने ताशकंद में बुलाकर नयी ज़िम्मेदारी सौंप दी है। पढ़ाने वाले का जीवन भाग्य और दुआओं पर बहुत टिका हुआ है। मुझे ये लगा कि दुआओं ने भाग्य को परिभाषित करते हुए मुझे फिर समय दिया है।
लम्बा अरसा बीत गया और लगा भी नहीं कि ताशकंद से बातों की उन्नीसवीं कड़ी 10 महीने बाद आ रही है।
जुड़े रहिएगा, जोड़े और संभाले रखियेगा!
तस्वीरें थोड़ी नयीं हैं, रंग और साथ वही पुराना, अटूट और ईमानदार!
स्वागत है, एक बार फिर से - ताशकंद डायरीज़ "ताशकंद से बातें - टीचर पर्व पॉडकास्टस पर!
धन्यवाद्!