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Description

हिंदी एक आनंद है जो हम तब पाते हैं जब हम अपने मन से किसी से बात करते हैं और वो भी हमसे मन से ही बात करता है। ये मन ही है हिंदी। हमारा मन! और जब आप मन से बात करें तो ये डर हटा दें कि मन इधर-उधर भी तो लगा रहता है। हम जिस तरह से लौट कर अपने घर, अपने नीड़ की ओर आते ही हैं, हिंदी वही नीड़ है जिसका खोना केवल मात्र तभी हो सकता है जब हमें ही लालच हो कुछ और पाने का। 

भाषा ने हमें सभ्य बनाया और प्रगति हमें तब मिली जब हमें यह समझ आया कि हर भाषा एक संस्कृति की, एक सभ्यता की धुरी है। हिंदी को तो हम भारत की हर भाषा में ऐसे पाते हैं जैसे जल होता है। हर भाषा सीखें और हिंदी में जियें! 

आईए लिखें प्रेम, कहें भी और सुनें - हिंदी में!

This Podcast is dedicated to our Hindi and with immense love for each language of the world. We wish the way we love our language and respect the languages spoken by any other human, they also reciprocate. But, without spreading love, we won't get it back. 

तुम बचपन से लेकर

यौवन तक-साथ हो

जो सीखा है तुम रही हो उसमें

और जो सीखना है उसका भी माध्यम मूलत: तुम

ही रहोगी!

तुम शाश्वत उपस्थिति हो

तुम सकारात्मक परिस्थिति हो

तुम भरी पड़ी हो भावों से

आयी हो कितने मुश्किल पड़ावों से

किसी को जकड़ना हो अगर तो

बस तुम्हें ही चोट पहुँचाना क़ाफी है

सदियां गुज़री हैं तेरे साथ

और तुम्हें मानकर!

तेरा सम्मान करना

सबके प्यार का सम्मान करना है और

तुझे सीखना 

सोचना सीख लेना है!

तुम कविता कहळवती हो

तुम कहानियाँ रचवाती हो

तुम टूटमूईया-बेतरतीब लिखवा देती हो

पर...

तुम एक दिन मात्र बन के रह गयी हो

तुम्हें मानने-अपनाने के लिए

अब सरकारी आदेश आते हैं

तुम तो सार्वभौमिक थीं

ये क्या...

तुम इतनी कमज़ोर कैसे हो गयीं 

या के?

तुम तो अब भी मज़बूत-सबल हो

परंतु तुम्हें बोलने वाले अब निरीह-शिथिल हो चुके हैं

हाइब्रिड जीवन जीने वालों ने तुम्हारा मोल भाव किया है

अपनी नयी सीखी भाषा से...

हिन्दी...

तुम आधुनिकों को अच्छी ना भी लगो  तो...

तो क्या हुआ...

मैं तो अब भी तुमसे ही सोचता-कहता हूँ

और मेरे जैसे और भी है...बहुत सारे-सब हमारे!