There remains a debate about prioritising Hindi and cursing English. But we can not do good to Our Hindi by pushing out English or any other language. हिंदी हम सबके आस पास बोली ही जाती है। हम भी बोलते हैं। हम अंग्रेज़ी भी बोलते-सुनते हैं। लिखते भी हैं। परन्तु आज-कल, जो कई बार अभियान छिड़ जाता है वह हिंदी को बचा नहीं सकता, भाषा को दूसरी भाषा से नहीं अपने 'निवासियों' से भय और ख़तरा है। सारी भाषाओं में एक साँझापन है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हर भाषा सभ्यता लेकर आई है। कहीं भी यदि संस्कृति है तो भाषा से ही तो है। डरकर और डराकर किसी से प्रेम नहीं हो सकता।