Vidyantriksh Parenting Series | Ep17 | बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता | TeacherParv Podcasts
बच्चों को हम जन्म जरूर देते हैं लेकिन उनकी ज़िन्दगी को हम अपने निर्णयों की बंधुआ नहीं रख सकते।
जीवन में सबसे मुश्किल कोई काम है, तो वो है- निर्णय लेना। हमारी ज़िन्दगी हमारे छोटे-छोटे निर्णयों का ही परिणाम होती है। जरा सोचिये, कितनी जरूरी है ये स्किल, कितने भी नम्बरों से ज्यादा महत्वपूर्ण। लेकिन क्या हम अपने बच्चों को इसके लिए तैयार करते हैं?
नहीं।
लगभग सभी पेरेंट्स अपने बच्चों के निर्णय उनकी ओर से लेते रहते हैं, और ये उनके बहुत बड़े होने तक भी चलता रहता है। पेरेंट्स ऐसा क्यों करते हैं। शायद हम डरते हैं कि वो सही निर्णय नहीं ले पाएंगे या ऐसा कर पाने में हम उनकी परिपक्वता पर शक करते हैं। लेकिन पेरेंट्स जो निर्णय लेते हैं क्या वो सारे सही साबित होते हैं?
क्या सभी निर्णय सोच समझकर, सिर्फ और सिर्फ बच्चों की भ लाई के लिए लिए गए होते हैं?
ज्यादातर नहीं।
अब यदि हम बच्चों को उनके निर्णय लेना सिखाएं, उन्हें ही निर्णय लेने दें, तो क्या हो सकता है। उन सारी बातों की संभावनाएं हैं जो यदि पेरेंट्स निर्णय लेते हैं तो हो सकती हैं। तो स्थिति में बिलकुल कोई फर्क नहीं। सिर्फ हमारी सोच है।
विश्वास कीजिये, बच्चे अपने निर्णय ले सकते हैं, आप नहीं सिखाएंगे तो भी। और ज़िन्दगी उनकी है, तो बेहतर है वो ही निर्णय लें। ऐसा करने पर उन्हें अपने निर्णयों के परिणाम भी स्वीकारने होंगे, उनकी जवाबदेही भी लेनी होगी। और अगली बार वो शायद और ध्यान से निर्णय लेंगे। हाँ, अपने अनुभव के कारण, आप उनके साथ चर्चा करके निर्णय लेने में उनकी मदद कर सकते हैं। वो भी तटस्थ रहकर, बिना अपना नज़रिया थोपे। अंतिम निर्णय बच्चों का ही होना चाहिए। ये आपका अपने बच्चों को शायद सबसे कीमती तोहफा होगा।
बच्चों को हम जन्म जरूर देते हैं लेकिन उनकी ज़िन्दगी को हम अपने निर्णयों की बंधुआ नहीं रख सकते।
पेरेंटिंग प्रगतिशील और समय के हिसाब से होना चाहिए।
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