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 शिव पुराण : यह अध्याय भगवान शिव और देवी उमा के प्राकट्य और उनके उपदेशों पर केंद्रित है। जब भगवान विष्णु ने शिव की स्तुति की, तब भगवान शिव देवी उमा सहित प्रकट हुए। शिवजी का दिव्य स्वरूप, जिसमें उनके पांच मुख, त्रिनेत्र, मस्तक पर चंद्रमा, जटा, और अंगों पर विभूति का वर्णन है, अत्यंत मोहित करने वाला था। उनके साथ भगवती उमा भी थीं।

ब्रह्मा और विष्णु ने पुनः उनकी स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वेद और गूढ़ ज्ञान का उपदेश दिया। विष्णुजी ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें किस प्रकार प्रसन्न किया जा सकता है और पूजा का सही तरीका क्या है। तब शिवजी ने बताया कि ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उनके अंगों से प्रकट हुए हैं। ब्रह्मा सृष्टि करें, विष्णु पालन करें और रुद्र संहार करें।

शिवजी ने बताया कि वे सगुण और निर्गुण, सत्चिदानंद, और परमात्मा हैं। वे स्वयं सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता हैं, और इन्हीं कार्यों के लिए उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के तीन रूप धारण किए हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि तीनों देवताओं में भेद नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे एक ही शिवस्वरूप के विभिन्न रूप हैं। देवी उमा को शिवजी ने प्रकृति और शक्ति का प्रतीक बताया, जिनसे सरस्वती, लक्ष्मी और काली उत्पन्न हुईं।

अध्याय के अंत में शिवजी ने विष्णु को सृष्टि का पालन करने की आज्ञा दी, और उन्हें तीनों लोकों में पूजनीय बताया।

शिव पुराण हिंदू धर्म में अठारह पुराणों में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला पुराण है। यह सनातन भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती के चारों ओर केंद्रित है। भगवान शिव सनातन धर्म में सबसे अधिक पूजे जाने वाले भगवानों में से एक हैं।