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इंदौर में पैदा हुए बदरुद्दीन काजी चालीस के दशक के दौरान रोजगार की तलाश में मुम्बई पहुंचे थे। मायानगरी लम्बे समय तक उनका इम्तिहान लेती रही। कभी वे सड़कों पर आइसक्रीम, सब्जियां और चश्मे बेचते तो कभी 26 रुपए की तनख्वाह में बस कंडक्टर बनकर टिकट काटते रहते। जहां हिम्मत, हौसले और मेहनत का मिलाप होता है, वहां वक्त बदलते देर नहीं लगती। सुनिए पूरी कहानी का PODCAST अनूप आकाश वर्मा के साथ।