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प्यार अंधा होता है लेकिन क्या यह गूंगा-बहरा होकर भी जीवित रह सकता है? ये सवाल भले ही पेचीदा है लेकिन इसका जवाब मुश्किल नहीं है. अक्सर सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोग, इस मुश्किल सवाल का जवाब देते हुए एक ऐसी मिसाल पेश कर देते हैं जिसे देख हर कोई अवाक रह जाता है. ऐसा ही एक मिसाल गुलजार साहब ने साल 1972 में फिल्म 'कोशिश' के जरिए पेश किया था. बता दें कि इस बेहतरीन फिल्म के पास दो नेशनल अवार्ड हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म को फाइनल तक पहुंचाने में गुलजार साबह के पसीने छूट गए थे. एक तरफ जहां वह आर्थिक तंगी का सामना कर रहे थे.वहीं दूसरी ओर फिल्म की हीरोइन बनने वाली एक खूबसूरत एक्ट्रेस अपनी एक अजीब डिमांड के चलते गुलजार को परेशान कर रखी थीं.