रवि साहब यानी संगीतकार रवि शंकर शर्मा को साहिर के लिखे शेर इतने पसंद आए कि उन्होंने फौरन कहा- इस पर तो गाना बनना चाहिए. फिर उन्होंने धुन बना दी. लेकिन प्रोड्यूसर डर गया. फिल्म में यह सीन राजकुमार पर फिल्माया जाना था, और उन्हें गाने के लिए कौन कहे. लेकिन गीतकार साहिर और संगीतकार रवि को गाना पसंद आ गया था, सो एक और धुन बनाई गई. फिर फिल्म के डायरेक्टर को गाना सुनाया गया. गाने के बोल इतने प्यारे थे और संगीत इतना सुरीला कि डायरेक्टर भी मुरीद हुए. मो. रफी की आवाज में रिकॉर्ड किया गया यह गीत फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटरों को भी पसंद आया था. सबको सिर्फ एक बात खटक रही थी कि यह गाना सिर्फ दो अंतरे का ही क्यों है, अधूरा है, इसे पूरा किया जाना चाहिए. तो साहिर को ढूंढा गया, लेकिन गीतकार लापता थे. साहिर अगले कुछ दिनों तक ढूंढे नहीं मिले. हारकर अधूरा गीत ही फिल्म में रखा जा सका.