'संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह मनुष्य की मानसिकता पर निर्भर है कि वह किसे पाप माने और किसे पुण्य कहे। बौद्धकालीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर रचे गए इस उपन्यास में भगवतीचरण वर्मा ने पाप और पुण्य को केंद्र में रखकर एक संन्यासी के मानसिक ऊहापोह तथा मानसिक संघर्ष को इतनी सजीवता से चित्रित किया है कि पाठक उसमें लीन हो जाता है। ...