दारोगाजी को अब विश्वास आया कि इस फ़ौलाद को झुकाना मुश्किल है। भोंदू की मुखाकृति से शहीदों का-सा आत्म-समर्पण झलक रहा था। यद्यपि उनके हुक्म की तामील होने लगी, कांस्टेबलों ने भोंदू को एक कोठरी में बंद कर दिया, दो आदमी मिर्चे लाने दौड़े, लेकिन दारोगा की युद्ध-नीति बदल
गयी थी। बंटी का हृदय क्षोभ से फटा जाता था। वह जानती थी, चोरी करके एकबाल कर लेना कंजड़ जाति की नीति में महान् लज्जा की बात है; लेकिन क्या यह सचमुच मिर्च की धूनी सुलगा देंगे ? इतना कठोर है इनका हृदय ?
सालन बघारने में कभी मिर्च जल जाती है, तो छींकों और खाँसियों के मारे दम निकलने लगता है। जब नाक के पास धूनी सुलगाई जायगी तब तो प्राण ही निकल जायँगे।