[ज्योतिस्वरूप आते हैं ]
ज्योति.-सेवक भी उपस्थित हो गया। देर तो नहीं हुई डबल मार्च करता आया हूँ।
दयाशंकर - नहीं अभी तो देर नहीं हुई। शायद आपकी भोजनाभिलाषा आपको समय से पहले खींच लायी।
आनंदमोहन - आपका परिचय कराइए। मुझे आपसे देखा-देखी नहीं है।
दयाशंकर - (अँगरेजी में) मेरे सुदूर के सम्बन्ध में साले होते हैं। एक वकील के मुहर्रिर हैं। जबरदस्ती नाता जोड़ रहे हैं। सेवती ने निमंत्रण दिया होगा मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं। ये अँगरेजी नहीं जानते।
आनंदमोहन - इतना तो अच्छा है। अँगरेजी में ही बातें करेंगे।
दयाशंकर - सारा मजा किरकिरा हो गया। कुमानुषों के साथ बैठ कर खाना फोड़े के आप्रेशन के बराबर है।
आनंदमोहन - किसी उपाय से इन्हें विदा कर देना चाहिए।
दयाशंकर - मुझे तो चिंता यह है कि अब संसार के कार्यकर्त्ताओं में हमारी और तुम्हारी गणना ही न होगी। पाला इसके हाथ रहेगा।
आनंदमोहन - खैर ऊपर चलो। आनंद तो जब आवे कि इन महाशय को आधे पेट ही उठना पड़े।
[तीनों आदमी ऊपर जाते हैं ]
दयाशंकर - अरे ! कमरे में भी रोशनी नहीं घुप अँधेरा है। लाला ज्योतिस्वरूप देखिएगा कहीं ठोकर खा कर न गिर पड़ियेगा।
आनंदमोहन - अरे गजब...(अलमारी से टकरा कर धम् से गिर पड़ता है)।
दयाशंकर - लाला ज्योतिस्वरूप क्या आप गिरे चोट तो नहीं आयी
आनंदमोहन - अजी मैं गिर पड़ा। कमर टूट गयी। तुमने अच्छी दावत की।
दयाशंकर - भले आदमी सैकड़ों बार तो आये हो। मालूम नहीं था कि सामने आलमारी रखी हुई है। क्या ज़्यादा चोट लगी
आनंदमोहन - भीतर जाओ। थालियाँ लाओ और भाभी जी से कह देना कि थोड़ा-सा तेल गर्म कर लें। मालिश कर लूँगा।