रात के करीब 1 बज रहे होंगे कमरे में दीवार घड़ी की अावाज़ साफ साफ सुनाई दे रही थी। रोमेश की अाँखों से नींद जैसे गायब थी एेसी भरी ठंड में भी उसके चेहरे पर अाई पसीने की बूंदें उसकी घबराहट को बयाँ कर रही थीं चेहरा फक्क सफेद सा हो गया था। अजीब ग्लानि जैसे भाव लिये वो छत की अोर निहार रहा था बाजू में उसकी पत्नि सुलेखा गहरी नींद में सो रही थी।
रोमेश ने बिना कोई अावाज़ किये रजाई को एक तरफ किया अौर पलंग से उतर कर बाथरूम की अोर चल दिया। बाथरूम में उसने अपना मुँह धोया अौर तौलिये से मुँह पोछकर अाईने में देखा, अब कुछ ठीक लग रहा था। वापिस अाकर धीरे से बिना अाहट के रजाई के अंदर हो गया एक तरफ करवट की अौर सामने दीवार की अोर ताकने लगा। अाँखों से नींद गायब थी यूँ ही अाँखों ही अाँखों में सारी रात कट गयी।
अगली रात रोमेश अपने लेपटाप पर कुछ काम कर रहा था सुलेखा बस अभी कमरे में अाई ही थी दूध का गिलास रोमेश की टेबल पर रखकर पलंग पर बैठ गयी अौर रिमोट से टीवी के चैनल बदलने लगी।
कितनी देर लगेगी - अचानक सुलेखा ने बड़ी अात्मीयता से पूछा
मुझे थोड़ा समय लगेगा तुम सो जाअो - रोमेश ने बड़े प्यार से जवाब दिया
हाँ ठीक है लेकिन दूध ज़रूर पी लेना - सुलेखा ने कहा
हाँ ठीक है - रोमेश ने जवाब दिया
गुड नाईट - सुलेखा ने कहा
वेरी गुड नाईट स्वीटहार्ट
सुलेखा ने रजाई खींची अौर मुँह ढंक कर सो गई
करीब एक घंटे काम करने के पश्चात रोमेश बिस्तर पर पहुँचा। वैसे तो रोमेश सुलेखा को अटूट प्यार करता था लेकिन जब भी सुलेखा नींद में होती अौर उसके चेहरे पर जो निश्छल भाव होते उन्हे देखकर उसके मन में प्रेम दुगना हो जाता प्रेम के इसी वेग में बहकर रोमेश ने उसके माथे पर अपना हाथ रखा। हाथ रखते ही जैसे हाई वोल्टेज का कंरट रोमेश को लगा हो बड़ी तीव्रता से उसने अपना हाथ अलग कर लिया, ह्रदय की धड़कने फिर बढ़ गयी थीं चेहरा पसीने से तरबतर हुअा जाता था। स्मृति में पुरानी घटनाअों का अाना शुरु हो गया था।
लेंप पोस्ट के नीचे वो लड़की शायद अगली बस का इंतज़ार कर रही थी। इस वक़्त रात का लगभग 8 बज रहा होेगा। लेंप पोस्ट के अलावा सभी जगह घुप्प अंधेरा था। लड़की कुछ असहज महसूस कर रही थी। दो अाँखें उसको लगातार देख रही थीं। कोई बस ना अाते देख वो कुछ ज़्यादा ही असहज हो चली थी। अब उसने चारो अोर निगाह दौड़ाई। कोई अाहट ना देख अब वो अंधेरे की अोर बढ़ने लगी अौर एक झाड़ी के पीछे जाकर बैठ गयी। शायद ये लघुशंका की असहजता थी।
अचानक ये दोनो अाँखें तेज़ी से उसकी अोर लपकी, इससे पहले की लड़की कुछ समझ पाती, एक भरे पूरे शरीर ने उस पर झपट्टा मारा अौर उसके बाद वो लड़की चीखती रही, चिल्लाती रही, अपनी अस्मिता की भीख माँगती रही। लेकिन न ही इस बीच कोई रक्षक इस सड़क से निकला न ही उस दंरिन्दे को उस पर दया अायी।
पता नहीं दंरिंदे ने उसे कब छोड़ा, वो तो बेसुध हो गयी थी, अाधा घंटे तक लगभग बेहोशी की हालत में सुलेखा वहीं पड़ी रही, जब होश अाया तो किसी तरह अपने अाप को सम्हाला, एकबारगी तो ख़्याल अाया कि जान दे दे। लेकिन जब घर वालों का ख़्याल अाया अौर ये भी कि जान देना कायरता है तो किसी तरह इस विचार को मन से निकाला अौर भावशून्य होकर बस स्टाप पर फिर से खड़ी हो गयी। अब दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था, एक जड़वत मूर्ति की तरह वो खड़ी थी। इक्का दुक्का अाटोरिक्शा निकले लेकिन उसमें हाथ उठाकर आटो रोकने की हिम्मत न बची थी या यूँ कहें कि क्षण भर में उसका विश्वास पुरुष प्रजाति से उठ गया था। अब या तो उसे किसी बस का इंतज़ार था या किसी अपने का।
एक बार तो एक अाटो वाले ने रुककर कहा भी कि मेडम घर छोड़ दूँ अाज शाम से ही बस वालों ने हड़ताल कर दी है लेकिन या तो उसने सुना नहीं या उसे किसी अजनबी की बातों पर बिश्वास नहीं रहा वो वैसे ही भावशून्य खड़ी रही। आटो वाला एक अजीब सा मुँह बना कर चला गया। सड़क पर फिर से सन्नाटा छा गया।
सहसा एक मोटर साईकिल अाकर रुकी अौर चालक ने अावाज़ दी - सुलेखा
ये रोमेश था।
रोमेश सुलेखा की ही काॅलोनी में रहता था, वैसे था तो अच्छा लड़का, अच्छी खासी नौकरी करता था, सभी से अदब से पेश अाता ़था, देखने में भी स्मार्ट था लेकिन सुलेखा ना जाने क्यों उसको नापसंद करती थी। शायद नापसादगी का कारण रोमेश का शराब पीना था, वो अक्सर शराब पीकर किसी से भी लड़ जाता अौर नशा उतरने के बाद, जो अक्सर एक घंटे में उतर जाया करता ़था, उन सभी से पैर पकड़कर माफी माँगता जिनसे उसने बदसलूकी की थी। काॅलोनी वाले उसके सामान्यत: किये जाने वाले अच्छे व्यवहार के कारण उसे माफ कर देते लेकिन सुलेखा को ये सख्त नापसंद था। हालांकि सुलेखा ये भी जानती थी कि रोमेश उसे पसंद करता है लेकिन ना कभी रोमेश ने प्रेम का इजहार किया अौर ना सुलेखा को कभी उसको इनकार करने की अावश्यकता पड़ी। परंतु ये