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Description

याद
एक ख़्वाब जहन में आई है फिर से,
धीरे -धीरे तुम्हारी याद सता रही है फ़िर से,

लगता है ये हवा तुमको छू कर आई है
इस सबब महक उठा है मेरा आंगन फिर से।

जब कभी किसी के निगाहें ए कशिश में डूबता हूँ
तुम्हारी आँचल आंख में ढक जाती है फिर से।

कुछ तो बाकी रह गया तेरे दरमियां अब भी
मुझमे कुछ अधूरा अधूरा लग रहा है फिर से।

ज़ुबान से जब कभी मोहब्बत का ज़िक्र होता है
तुम्हारी तिलस्मी तस्वीर आजाती है फिर से।

जब कभी किसी महबूब के इश्क़ में खोने लगता हूँ
तुम्हारी बेवफाई दीपक जला जाती है फिर से ।
दीपक