गीता आंतरिक दुनिया में समत्व और सद्भाव बनाए रखने के बारे में है जबकि कानून बाहरी दुनिया में व्यवस्था बनाए रखने के बारे में है। किसी भी कार्य के दो भाग होते हैं, एक है इरादा और दूसरा है निष्पादन यानी उसे पूरा करना। कानून के शब्दावली में, उन्हें अपराध के संदर्भ में, लैटिन शब्दों में, क्रमश: ‘मेन्स रिया’ और ‘एक्टस रिउस’ कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, एक सर्जन और एक हत्यारा दोनों ही चाकू का इस्तेमाल करते हैं। सर्जन का इरादा व्यक्ति का जीवन बचाने या इलाज करने का होता है, लेकिन हत्यारे का इरादा नुकसान पहुँचाना या मारना होता है। मौत दोनों ही स्थितियों में हो सकती है, लेकिन इरादे बिल्कुल विपरीत होते हैं।
कानून परिस्थितिजन्य है जबकि गीता शाश्वत है। सडक़ के बाईं ओर गाड़ी चलाना एक देश में कानूनी है और दूसरे देश में यह अपराध हो सकता है। कानून परिस्थितियों को सही या गलत में विभाजित करता है, लेकिन जीवन में कई संदेहास्पद क्षेत्र होते हैं।
जब तक कोई करों का भुगतान करता है (एक्टस रिउस), कानून को इस बात की परवाह नहीं होती है कि यह खुशी या दुख के साथ किया गया था (मेन्स रिया)। कानून तब तक कोई कदम नहीं उठाता जब तक कि देशवासी कानून के परिभाषित मानकों के दायरे में रहते हैं। अगर कोई अपराध करने की सोच रहा है, तो कानून उस पर रोक नहीं लगाएगा, लेकिन गीता कहती है कि यह सोच भी$खत्म होनी चाहिए।
पेड़ जब युवावस्था में हो तो उसे मोड़ दीजिए। गीता में कहा गया है, कर्म के बारे में जागरूक होइये जब उसे करने के बारे में इरादा बना रहे हों। यह वर्तमान में होता है लेकिन एक बार जब कार्य को क्रियान्वित कर देते हैं तो फिर उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रह जाता।
इरादा अच्छा हो या बुरा, जब वह सफलता से मिलता है तो अहंकार को बढ़ावा मिलता है और यदि असफलता मिली तो वह भीतर ही भीतर लावा का रूप लेने लगता है और कमजोर क्षणों में फट पड़ता है। इसका मतलब यह है कि दोनों ही स्थितियां हमें अपने से दूर ले जाती हैं। इसलिये गीता हमें इरादों से परे जाने में मदद करती है। जबकि कानून का ध्यान निष्पादन पर है, समकालीन नैतिक साहित्य हमें अच्छे / नेक इरादे रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
केवल अपने इरादों के प्रति जागरूकता और अवलोकन से ही हम उनसे पार पा सकते हैं और अन्तरात्मा तक पहुंच सकते हैं।