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आप सभी को मेरा प्रणाम। आज हम यहां देश की आजादी की लड़ाई के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाने के लिए जुटे हैं। आज के दिन पूरा देश पराक्रम दिवस भी मना रहा है। भारत सरकार ने वर्ष 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की थी। करिश्माई नेतृत्व वाले सुभाष चंद्र बोस के नारों ने स्वतंत्रता आंदोलन और जनता में जबरदस्त जान फूंकी थी। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा....!', और जय हिन्द! ऐसे नारे थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई को तेज किया और उसे धार दी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में ओडिशा के कटक में हुआ था। बचपन से ही वह पढ़ाई के काफी तेज थे। स्कूल के दिनों से उनका राष्ट्रवादी स्वभाव सबको नजर आता था। स्कूलिंग के बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन उग्र राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। नेताजी ने आजादी की जंग में शामिल होने के लिए भारतीय सिविल सेवा की आरामदेह नौकरी ठुकरा दी। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में उनकी रैंक 4 थी। किसी भी भारतीय के लिए सिविल सेवक का पद बेहद प्रतिष्ठित होता है लेकिन नेताजी ने अपना शेष जीवन भारत को ब्रिटिश औपनिवेशक शासन से मुक्त कराने में समर्पित करने का फैसला किया।
1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें कई बार जेल में डाला गया लेकिन देश को आजाद कराने का उनका निश्चय और दृढ़ होता चला गया।
अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' की स्थापना करते हुए 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'
नेताजी भारत की आजादी को लेकर बेचैन थे। उन्होंने जन-जन में आजादी के संघर्ष की अलख जगा दी। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 1943 में 'आजाद हिंद सरकार' की स्थापना करते हुए 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया। जर्मनी, इटली, जापान, आयरलैंड, चीन, कोरिया, फिलीपींस समेत 9 देशों की मान्यता भी इस सरकार को मिल गई थी।
इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' उन्होंने एक नए हौसले के साथ ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए कूच कर दिया। इसके आलावा उन्होंने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन भी जर्मनी में शुरू किया और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा।
साथियों, आज के युवा सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते हैं। उनके विचार और उनके कथन आज भी भारतीय जनता के दिलों में बसे हुए हैं। उनके ऊर्जावान नारे आज भी प्रासंगिक हैं। जय हिंद का नारा लगाते ही माहौल देशभक्ति से भर जाता है। साथियों, आज का दिन नेताजी के जीवन और त्याग व बलिदान से सीख लेना का दिन है। आज हमें उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
विश्व इतिहास में 23 जनवरी 1897 (23rd January 1897) का दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावती देवी के यहां हुआ था। उनके पिता ने अंगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया।

अब सुभाष अंगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।'

दिसंबर 1927 में कांग्रेस पार्टी (Congress) के राष्ट्रीय महासचिव (National secretary General) के बाद 1938 में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President) चुना गया। उन्होंने कहा था- मेरी यह कामना है कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना है। हमारी लड़ाई केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से नहीं, विश्व साम्राज्यवाद से है। धीरे-धीरे कांग्रेस से सुभाष का मोह भंग होने लगा।
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