सिंधु तरो उनको बनरा, तुसपै धनुरेख गई न तरी।
बाँध्योइ बाँधत सो न बँध्यो उन बारिधि बाँधि कै बाट करी।।
अजहूँ रघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूँछि जरी (जड़ी हुई, युक्त) न जरी गढ़, लंक जराई जरी।।