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Shrimad Bhagavad Gita Chapter-02 (Part-02) in Hindi Podcast

भागवत गीता भाग २ सारांश / निष्कर्ष :- कर्म – जिज्ञासा

प्रायः कुछ लोग कहते है, कि दूसरे अध्याय में गीता पूरी हो गयी। किन्तु केवल कर्म का नाम मात्र लेने से कर्म पूरा हो जाता हो। तब तो गीता का समापन माना जा सकता है। इस अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने यही बताया है कि अर्जुन निष्काम कर्म के विषय में सुन, जिसे जानकर तू संसार बंधन से छुट जायेगा। कर्म करने में तेरा अधिकार है, फल मे कभी नहीं। कर्म करने मे तेरी (असरधा) भी न हो। निरन्तर करने के लिए तत्पर हो जाता है। इसके परिणाम में तू परम पुरुष का दर्शन कर स्थितप्रज्ञ बनेगा।

यह संख्यायोग्य नामक अध्याय नहीं है। यह नाम शाश्त्र्कार का नहीं, अपितु टिकाकरो की देन है। वे अपनी बुधि के अनुसार ही ग्रहण करते है तो आश्चर्य क्या है।

इस अध्याय में कर्म की गरिमा, उसे करने मे बरती जानेवाली सावधानी और स्थितप्रज्ञ के लक्षण बताकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में कर्म के प्रति उत्कंठा जाग्रत की है, उसे कुछ प्रश्‍न दिये है। आत्मा शाश्‍वत है, सनातन है, उसे जानकर तत्वदर्शी बनो। उसकी प्राप्ति के दो साधन है, ज्ञानयोग और निष्काम कर्मयोग।

अपनी शक्ति को समझकर, हानि लाभ का स्वयं निर्णय लेकर कर्म में परवर्त होना ज्ञानीमार्ग है तथा इष्ट पर निर्भर होकर समर्पण के साथ उसही कर्म में प्रवृत्त होना ज्ञानमार्ग है। तथा इष्ट पर निर्भर होकर समर्पण के साथ उसी कर्म में प्रवृत्त होना निष्काम कर्ममार्ग या भक्तिमार्ग है। गोस्वामी तुलसीदास ने दोनों का चित्रण इस परकार किया है।

मेरे दो प्रकार के भजने वाले है एक ज्ञानमार्गी दूसरा भक्तिमार्गी। निष्काम ज्ञानमार्गी या भक्तिमार्गी शरणागत होकर मेरा आश्रय लेकर चलता है। ज्ञानयोगी अपनी शक्ति सामने रखकर, अपने लाभ हानि का विचार कर अपने भरोसे चलता है, जबकी दोनों के सत्रु एक ही है। ज्ञानमार्गी को काम, क्रोधदि शत्रुओं पर विजय पाना है। और निष्काम कर्मयोगी को भी इन्ही से युद्ध करना है। कामनायो का त्याग दोनों करते है और दोनों मार्गो में क्या जानेवाला कर्म भी एक ही है। इस कर्म के परिणाम में परमशान्ति को प्राप्त हो जाओगे लेकिन यह नहीं बताया की कर्म है क्या? अब आपके भी समक्ष कर्म एक प्रश्न है।

अर्जुन के मन में भी कर्म के प्रति जिज्ञासा हुई। तीसरे अध्याय के आरंभ में ही उसने कर्मविषयक प्रश्न प्रस्तुत किया।

इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में कर्म – जिज्ञासा नामक दूसरा अध्याय पूर्ण होता है।