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Description

ढाई तीन दशक पहले, जब ज़िंदगी उपभोक्तावाद के प्लास्टिक पंजों में इतनी बुरी तरह जकड़ी नहीं गयी थी, बचपन का समय एक अलमस्त बेफ़िक्री से भरा समय था।
ख़ासकर छोटे शहरों और क़स्बों में, बच्चे ऐंचक बेंचक गली मोहल्लों में खेलते कूदते, ज़िंदगी और इसके किरदारों से एक्सपेरिमेंट्स करते कराते, टीन एज की ओर ख़िरामाँ ख़िरामाँ बढ़ते रहते थे।
लपूझन्ना एक छोटे शहर के ऐसे ही एक बचपन की संस्मरणात्मक शैली की कथा है जो लेखक-अनुवादक अशोक पाण्डे जी ने लिखी है।
अशोक जी के लिखे इस हास्य से भरपूर और बेहद मज़ेदार कथानक को मैंने आवाज़ दी है अपने नये पॉडकास्ट सीरीज़ में, और मेरा आग्रह है कि इसे एक बार समय ज़रूर दें। यह मेरा दावा है कि अशोक जी की लेखनी, जिसका नमूना वह पहले अपने प्रसिद्ध ब्लॉग “कबाड़ख़ाना” पर और अब यहाँ फ़ेसबुक पर देते रहते हैं, आपको फिर फिर वापिस बुलायेगी 😊