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Description

“राग-दरबारी" न केवल भारत की गाय-पट्टी में बिखरे असंख्य कस्बों और गावों का एक अनिवार्य प्राईमर है बल्कि व्यंग्य की शक्ल में हमारे तंत्र की विफलताओं का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है|
शिवपाल-गंज नामक एक काल्पनिक क़स्बे में स्थित यह गाथा छोटे कस्बों और गावों की सामाजिक और राजनैतिक हालत पर तीखा किन्तु सोद्देश्य व्यंगय करती है, और सत्तर के दशक में लिखी जाने के बावजूद यह कमोबेश आज भी प्रासंगिक है |स्वयं लेखक के शब्दों में - "जैसे जैसे उच्चस्तरीय वर्ग में ग़बन, धोखा-धड़ी, भ्रष्टाचार और वंशवाद अपनी जड़ें मज़बूत करता जाता है, वैसे वैसे आज से चालीस वर्ष पहले का यह उपन्यास और भी प्रासंगिक होता जा रहा है"। इस उपन्यास के अंश सुनिये।