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Description

हिंदी के अनन्य व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का दशकों पुराना ये निबंध आज भी प्रासंगिक है। क्यूँकि जब तक हम आवारा भीड़ के बनने की स्थितियाँ पैदा करते रहेंगे, आवारा भीड़ के ख़तरे यूँही बने रहेंगे।
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