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Description

हर धर्म के आदेश को माना मैंने
दर्शन के हर एक सूत्र को जाना मैंने
जब जान लिया सब कुछ तो ए मेरे नीरज
मैं कुछ भी नहीं जानता ये जाना मैंने

हमें यारों ने क्या क्या समझा
किसी ने कतरा,किसी ने हमें दरिया समझा
सब समझते रहे,जैसा उसे जैसा भाया
किन्तु हम जो थे वही तो न ज़माना समझा

समय ने जब भी अँधेरों से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमनें रोशनी की है
सुबूत हैं मेरे घर में धुँए के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने खुदखुशी की है

ज़िन्दगी मैंने गुजारी नहीं सभी की तरह
मैंने हर पल को जिया पूरी इक सदी की तरह
किसी भी आँख का आँसू जो गिरा दामन पर
मैं उसमें डूबा समुंदर में इक नदी की तरह

फौलाद की मूरत भी पिघल सकती है
पत्थर से भी रसधार निकल सकती है
इंसान अगर अपनी पे आ जाये तो
कैसी भी हो तकदीर बदल सकती है

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में
तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में
Written And Recites By- Gopal Das Neeraj