वंदे गीतासारम
ईश्वर हैं इसकी पुष्टि क्यों कर करनी पड़े, क्योंकि हमें हमारे वेद आदि गर्भ से नहीं सुनाए गए अर्थात वर्तमान समय में हम गर्भ ज्ञान और गर्भ संस्कार का पालन बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं फिर भी यदि पूर्ण समर्पण और आस्था से हम श्री भगवान का ध्यान करें तो हमें उन संस्कारों की उपलब्धि होगी जिस संस्कार भूमि पर हम उत्पन्न हुए हैं
जिस तरह कोई भी पशु पक्षी पेड़ पौधा हजारों सालों से अपने पहचान बनाए हुए हैं इस तरह हमें भी अपनी मूलभूत पहचान को नसीब कायम रखना होगा बल्कि उसके गुणवत्ता को समझना भी होगा
यह समाज श्रीमद् भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का बड़ा आभारी है कि उन्होंने इतने सरल और सहज तरीके से समाज के लिए गीता सार उपलब्ध कराया
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