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Description

आप एक वृक्ष को जानते हैं उसके तने को जानते हैं उसकी शाखाओ और पत्तियों को देखते हैं फूल फल आदि की खुशबू और स्वाद को महसूस कर आनंदित होते हैं लेकिन उसकी जड़ कहां और कितनी लंबाई तक फैल गई है वह आप नहीं देख पाते और शोधकर्ता (researcher) को छोड़कर बाकी लोग उसके बारे में ज्यादा जानना भी नहीं चाहते लेकिन किसी भी वृक्ष की सबसे बड़ी शक्ति उसकी जड़ें होती हैं ठीक उसी तरह हमारे संस्कार हमारी जड़ें हैं जिसे हर भारतीय को जानना और समझना बहुत जरूरी है
अच्छे और बुरे का ज्ञान झूठ और सच का ज्ञान हमें बचपन से नहीं कराया जाता हमें इन चीजों के बारे में बताया जाता है और काफी हद तक डराया जाता है कि झूठ बोलने से पाप होता है नरक मिलता है लेकिन हम झूठ तब नहीं बोलेंगे जब हमारा व्यक्तित्व सशक्त होगा जब हमारा चरित्र सुदृढ़ होगा
हमारे देश वाले तो बहुत खुश हैं की दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहां पर भारतीय बड़े-बड़े ओहदों पर ना हों लेकिन उसका प्रतिशत कितना है और जो विदेश में भारतीय रह रहे हैं उन्हें अपनी मातृभूमि और अपने सामाजिक संस्कारों का हमसे बेहतर ज्ञान है लेकिन वह तब जब वो मातृभूमि से बहुत दूर जाकर किन्हीं कारणों से बस गए
वह हमसे बेहतर हर उत्सव को मानते हैं बिना आडंबर के
हमें से अधिकतर लोग तो अधिक पटाखे चलाएं अधिक रंग और हुड़दंग फैलाएं तो हमारी दिवाली और होली है
हमें अपने मंदिर मंदिरों में स्थापित मूर्तियां मूर्तियां के सच्चे प्रभाव और ऊर्जा का उतना ज्ञान नहीं है जितना कि हम व्रत उपवास रखकर ईश्वर से मांगने की कला को जानते हैं
143 करोड़ भारतीयों में से अधिकतर का यह मानना है कि हम साफ सुथरा हैं हमारा घर साफ सुथरा है बाहर हम कितनी देर के लिए जाते हैं अगर कहीं गंदगी पड़ी है तो वह सरकार की जिम्मेदारी है क्या सड़कों के किनारे गंदगी सरकार फैलती है ?
जो बड़े और अमीर लोग हैं उन्हें अक्सर सरकारी शौचालय में जाने की आवश्यकता नहीं होती और यदि जाते हैं तो एयरपोर्ट वगैरा पर वहां तो बहुत साफ सफाई होती है लेकिन जो आम लोगों के प्रयोग के लिए शौचालय बने हैं उनकी हालत देखी है झोपड़पट्टी के जो शौचालय हैं उनकी हालत कभी देखी है अगर अच्छी है तो उसके लिए क्या किया यह भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्कार है कि आप उन लोगों के लिए समय दें थोड़ा शिक्षित करने के लिए और उनका सामाजिक संस्कार और ज्ञान प्रदान करने के लिए जो सामाजिक स्तर पर गरीब और बहुत गरीब कहलाए जाते हैं उन लोगों की एक आदत हो गई हर सरकार में अपने वोटो की गिनती बढ़ाने के लिएअपनी राजनीतिक कुर्सी को बचाए रखने के लिए मुफ्त में गेहूं डालें और भी चीज बंटनी शुरू कर दी साथ-साथ पैसा भी यह कितना संवैधानिक है और इसे कितने को संस्कार जन्म ले रहे हैं बिना इस बात पर विचार किये या बिना इस मदद से होने वाले सामाजिक नुकसान को समझे
साहिर लुधियानवी साहिब का एक शेर है कि कहने को बहुत कुछ है मगर किसे कहें हम कब तक यूं ही खामोश रहे हैं और सही हम
हम दिखावे के छलावे से छले गए थे, छले जा रहे हैं छले ना जाएं उसके लिए मैं आपको तैयार कर रहा हूं उम्मीद है आप पूरे समर्पण से मेरे साथ हैं