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बहुत गर्मी होती है फिर बहुत बारिश होती है फिर बहुत सर्दी होती है फिर मौसम बदलते रहते हैं मौसम का बदलना जैसे हमारे जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है इस तरीके से हमें भी सकारात्मक बदलावों की जरूरत होती है हम आजाद हुए हमने आगे वह चीज नई पौध तक पहुंचाई ही नहीं की गुलामी क्या थी क्यों थी और आजादी के लिए कितने बलिदान देने पड़े जिन्होंने दिए और उसका नई पौध से क्या संबंध है
हम संविधान को कितना जानते हैं अनुच्छेदों को कितना जानते हैं हमसे संविधान का क्या संबंध है इसके विषय में भी अधिकाधिक लोग नहीं जानते
अधिकतर सरकारी अधिकारी अपने काम और अपने फर्ज में सामाजिक कर्तव्य को नहीं जोड़ते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा सिखाया नहीं गया सिखाया नहीं गया अर्थात संस्कारों वाली घूंटी में घोंट कर पिलाया ही नहीं गया , जहां बदलाव की आवश्यकता है उसे पर हमारा ध्यान पिछले लगभग 300 सालों से नहीं है और पिछले 76 सालों में तो हमारे वोट पाकर कुर्सियां सजाने वाले इस ओर सोच ही नहीं पा रहे हैं ? क्योंकि उनको भी तो संस्कारों में और विरासत में यह सामाजिक संस्कार नहीं मिले
हमारी सरकारों को राजनीतिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय आधार बनाना है और वर्तमान सरकार उसे बखूबी बना रही है पहले सरकारों ने भी काम तो किया ही है इसमें कोई संदेह नहीं है और हमारे समाज में लड़का जैसे पढ़ लिख जाए तो उसका अपना भी सपना होता है और घर वालों का भी विदेश में नौकरी मिल जाए हर कोई विदेशी सुधारने चला है अपने लालच और मोह के लिए उसे चक्कर में घर जो है वह बंजारा होता जा रहा है और आपने महसूस किया पक्षियों की बोली और भाषा और मिठास नहीं बदली इंसान इस मामले में बहुत-बहुत प्रगति कर चुका है बदलाव हमें कट्टरता की तरफ लेकर तीव्र गति से दौड़ रहे हैं कोई स्टेशन नहीं बीच में यदि स्टेशन है तो वह भी कट्टरता का है जबकि हमारे भारतीय संस्कार और संस्कृति कट्टरता की अवहेलना करते हैं प्राचीन समय से और बहुत कुछ है जो मैं आपसे मिलकर साझा करना चाहता हूं वंदे स्नेहम आपका वेट कबीरा