आज रजनी जी के माध्यम से हमने भगवद गीता के अध्याय छ ध्यान योग का सार समझा जिसमे रजनी जी ने बताया की असली योगी कोन है,योगी वही जो बिना फल की इच्छा से कर्म करता,प्रभु की खुशी से सेवा भाव से सरल शब्दों में बोले तो निष्काम कर्म करने वाला असली योगी,आगे सन्यासी के बारे बताया,घर भार छोड़ के जंगलों में चले जाने से कोई सन्यासी नही हो जाता घर में रहते हुए त्यागी बने त्याग करना इच्छा का,भोग विलास का,सुख साधना ऐसे करके सन्यासी बन सकते फिर इस अध्याय में मन के कॉन्सेप्ट को क्लियर किया गया मन ही इंसान का शत्रु और मित्र मन हारे हार मन के जीते जीत, यहां पर अर्जुन कृष्ण को बोल रहे की वो वायु को वश में कर सकते लेकिन मन की गति तेज मन को कंट्रोल नही कर सकते तो यहां कृष्ण ने मत दिया अपना मत मतलब अर्जुन के माध्यम से बताया की कुछ करना मुश्किल नहीं ये बात ठीक है मन की गति तेज लेकिन निरंतर प्रयास से मन को वश किया जा सकता,तो फ्रेंड्स मन को वश में करने के लिए कृष्णा ने यहां हमे 2 step बताए एक उपयुक्त अब्यास सत्संग,साधना,सेवा का दूसरा विरक्ति,मतलब परहेज विनाशक गतिविधियां से बचना हरि नाम की दवाई लेनी और साथ ही साथ विनाशक गतिविधियां से परहेज करना।
तो बहुत बहुत आभार रजनी जी एक बार फिर से आपको इतनी प्यारे तरीके से अपने हमे अध्याय छ का सार समझाया।
सदेव जपे और दुसरो को जपने के लिए प्रेरित करें
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे 🙏🙏
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