आज के सत्संग में नितिन जी ने हमे भगवद गीता के अध्याय चार अलौकिक ज्ञान के श्लोक 1से 6 समझाए।
फ्रेंड्स श्लोक 1 में नितिन जी ने बताया इस अध्याय की शुरुआत में प्रभु जी भगवद गीता इस अलौकिक ज्ञान का इतिहास बता रहे,भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया |आगे श्लोक 2 में नितिन जी ने बताया की ये अलौकिक ज्ञान गुरु परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया फ्रेंड्स नितिन जी बता रहे थे कि कालक्रम में यह परम्परा लुप्त हो गई, अतः यह ज्ञान लुप्त हो गया लगता है ।लेकिन अर्जुन के माध्यम से प्रभु ने हम कलयुगी जीवों पर दया करी अर्जुन को एक बार ऐसा ज्ञान सुनने को मिला लेकिन हम बहुत भाग्यशाली है जो नित्य निरंतर गोलोक एक्सप्रेस से हमे ये दिव्य अलौकिक ज्ञान मिल रहा,आगे श्लोक 3 में बताया नितिन जी ने भगवान जी ने अर्जुन को ये दिव्य अलौकिक ज्ञान इसलिए दिया क्योंकि अर्जुन उनके भक्त और मित्र भी है तो फ्रेंड्स यहां सरल शब्दों में समझा जा सकता की ये अलौकिक ज्ञान भक्तो की संगति से ही मिल सकता आगे श्लोक 4 में नितिन जी ने बताया की अर्जुन हम सबके लिए प्रभु से जिज्ञासा कर रहा क्योंकि जी अभक्त होते उनको विश्वास नही होता यहां अर्जुन ने जिज्ञासा करी आगे नितिन जी ने श्लोक 5 में बताया अर्जुन ने जो जिज्ञासा करी उसके लिए प्रभु जी ने बताया – तुम्हारे तथा मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं | मुझे तो उन सबका स्मरण है, किन्तु तुम्हें उनका स्मरण नहीं रह सकता है |
आगे नितिन ने श्लोक 6 में बताया भगवान जी बता रहे वो अजन्मा और अविनाशी है और वही समस्त जीवों के एकमात्र स्वामी है उनको सब याद रहता लेकिन जीव सब भूल जाता तो आइए फ्रेंड्स नितिन जी की इस AUDIO के माध्यम से समझते इन श्लोको को थोड़ा और विस्तार से ।
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