दोपहरें… जब कपड़े सूख रहे होते हैं आंगन में ! बड़ी – पापड़ धूप के साथ -साथ सरकते रहते हैं इधर -उधर और पूरा की पूरा माहौल , विविधभारती के पुराने गीतों पर आधारित हो जाता है ! सुबह के हो चुके कामों और शाम के न हो चुके कामों के बीच सुस्ताती दोपहरें अक्सर खाली पड़ी रहती हैं बस । ये वही दोपहरें हैं जो माँएं बेटा – बेटियों की पढ़ाई की चिंता में गुज़ारा करती हैं । और जब read more