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क्या-क्या हो रहा है न इन दिनों ! सोना चाहो तो नींद नहीं ! आँख खुले तो चैन नहीं ! भोजन मिले तो भूख नहीं ! जल मिले तो प्यास नहीं ! फुर्सत में तो हम सभी  हैं पर बेफ़िक्र हममें कोई नहीं ! घण्टों बैठे रहें मगर दिल को कहीं आराम नहीं ! सारा परिवार घर में ही हैं पर हँसी ख़ुशी की शाम नहीं !ऑफ़र तो ढेरों थे पर क्या धंधा ज़ीरो हुआ नहीं !और कारोबारी कैसे बचे ? जब कारोबार ही बचा नहीं ! स्कूल नहीं, कॉलेज नहीं, ऑफ़िस नहीं, बाज़ार नहीं, ज़िंदा लोगों की बस्ती में ,बन्दे सारे ज़िंदा नहीं! तन से कुछ-कुछ ज़िंदा भी हैं पर मन से सारे ज़िंदा नहीं ! आधे जीकर, आधे मरकर हमने जाना सत्य यही कि झूठे सारे रिश्ते नाते, इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं ! read more - https://www.lifearia.com/poem-on-corona-virus-covid-19-in-hindi/