चलो भाग चलें भीतर की ओर..... ये वक़्त जब बाहर निकलना मुमकिन नहीं ! तो क्यों न भीतर ही मुड़ा जाए ! उन रास्तों पर बढ़ाए जाएं कदम जो बाहर से जाते हैं भीतर की ओर.... और पहुंचा जाए वहां जो हमारी असल ज़मीन है, जो सिर्फ़ हमारी अपनी है ! तो क्या हुआ कि हम अक़्सर पहुंच नहीं पाते हैं वहां ! जहां पनपते हैं हमारे विचार, खिलती हैं हमारी भावनाएं । जहां छुपे बैठे हैं सपने कई ... ढूंढों तो मिलेंगे अपने कई.... सुलझी मिलेंगी गुत्थियां कई.... बंद एहसासों की खिड़कियां कई.... दीवारें कई.... घरौंदे कई .... पर्वत कई..... झरने कई..... मसलें कई......हल कई....... हँसी ख़ुशी की झीलें कई.... ख़ुद से ख़ुद की दूरियां कई.....फासले कई और read more