"वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इसकी भी आदमी सी है..." - राहत इंदौरी
एक अस्पताल की खिड़की से बाहर झांकते ही वक़्त ने मुझे ठहरा दिया। सड़क किनारे खेलते मासूम बच्चे, बेफिक्री से भरी उनकी हँसी—ये सब देख कर दिल में एक अजीब सी हलचल हुई। कभी हम भी तो ऐसे ही थे... लेकिन अब? क्या हम वाकई बदल गए, या बस वक़्त ने हमें ढाल लिया?
इस एपिसोड में, मैं आपको एक ऐसी ही कविता सुनाने जा रहा हूँ—एक अहसास, एक सवाल, और शायद, एक जवाब भी। सुनिए और महसूस कीजिए, क्योंकि कभी-कभी, ठहर कर सोचना भी ज़रूरी होता है।