एक बार फिर लॉकडाउन की बात हुई और फिर बहुतों को अपनी जिंदगी जेल सरीखी लगने लगी है। पर क्या जो हम सोचते हैं, वही जेल है। इस पर वर्तिका नन्दा की लिखी कुछ पंक्तियां। इस कविता को हाल में साहित्य अकादमी ने समकालीन भारतीय साहित्य में प्रकाशित किया है। य़ह विशेष है, इसलिए इसे विशेष तवज्जो देकर सुनिएगा। शायद आपकी मुलाकात किसी परिचित से हो जाए जो खुद जेल में बंद हो। This podcast is edited by Harsh Vardhan.